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सही और ग़लत

मेहुल जो कि Army में मेजर है कुछ ही वक़्त पहले लड़ाई से वापिस आया है और अपने दोस्त को लड़ाई के अपने अनुभव के बारे में बताता है।

मेहुलः तो तू मेरे वहाँ के experience के बारे में जानना चाहता है? जो time मैंने वहाँ बिताया है वो मेरी ज़िंदगी का सबसे डरावना time था। हर रोज़ कहीं बम फटते थे, किसी भी वक्त कहीं से भी अचानक आप पर गोलियाँ चलने लगती थी, वो लोगों को चीखना, चिल्लाना और एक ऐसी भाषा जो आप समझते भी नहीं हो। It is haunting!

हम लोग ऐसे शहरों में चलते थे जिनको कुछ ही देर पहले हमने बमों से बर्बाद किया होता था और छोटे छोटे बच्चे हमें नज़र आते थे। एक बार एक छोटी सी लड़की थी क़रीब 5 साल की। प्यारी मासूम सी आँखें, काली काली, बड़ी बड़ी।वो एक बर्बाद हो गई building के सामने खड़ी थी, डरी घबराई हुई। उसे समझ नहीं आ रहा था की रोए, चिल्लाए या भाग जाए। बिल्कुल अकेली लाचार। तो मैं उसके पास गया, उसकी बड़ी बड़ी आँखों में देख कर उससे पूछा “सब ठीक है ना बेटा?”। और फिर जो हुआ उसे मैं सारी ज़िंदगी भुला नहीं पाऊँगा… उसकी आँख से एक आँसू लुढ़कता हुआ उसके गालों तक आया और अचानक वो आ कर मुझ से ज़ोर से लिपट गयी और मुझे कस कर जकड़ लिया। उस बच्ची का सारा दर्द मैं अपने अंदर महसूस कर रहा था। वो छोटी सी बच्ची जिसका सब कुछ ख़त्म हो गया था कहीं ना कहीं मेरी वजह से। और तभी मेरी नज़र उस building के मलबे की तरफ़ गयी जिसके अंदर से एक हाथ बाहर निकल हुआ था। I realised कि वो उसकी माँ का हाथ था और वो अपनी माँ को छोड़ कर कहीं नहीं जाने वाली थी।

(Beat)

It made me sick.

हम जंग में ये सोच कर जाते हैं की हम इंसानियत का भला करने वाले हैं। हम इंसानियत को बचाने वाले heroes हैं। लेकिन जब तुम एक छोटी सी, डरी हुई मासूम बच्ची को हाथ में ले कर उसके नज़रिये से देखोगे ना तुम्हें पता लगेगा कि ये सब बकवास है। ग़लत है। पाप है। और तब तुम्हारे दिमाग़ में सवाल उठने लगते हैं। You question everything. सोच सोच कर दिमाग़ फट जाता है की क्या ग़लत है और क्या सही। क्या भगवान वाक़ई ये सब चाहता था?

ऐसा था मेरा experience।