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बर्दाश्त

दिशा को जब अपने पति अरमान की एक नए शहर में नौकरी के बारे में पता लगता है तो वो उसके साथ वहाँ shift होने के लिए साफ़ मना कर देती है।

दिशाः देखो अरमान, अब मैं और बर्दाश्त नहीं कर सकती। अपनी सारी ज़िंदगी जैसा तुमने चाहा मैंने वैसा किया। मैं बच्चा नहीं चाहती थी तुम्हारे लिए वो किया। इस छोटे से घर में shift नहीं करना चाहती थी, वो किया, तुम्हारी हर छुट्टी पे तुम्हारे बेहूदा घर वाले यहाँ टपक जाते थे, उन्हें भी बर्दाश्त किया, तुम्हारे office वाले तुम्हारे दोस्तों को भी इतने साल झेला। जो तुमने बोला जैसा तुमने बोला वैसा किया और बदले में तुम्हारे प्यार के सिवा कुछ नहीं माँगा। लेकिन तुम मुझे वो भी नहीं दे पाए। इतना मुश्किल था क्या ये भी तुम्हारे लिए? अपनी बीवी को प्यार कर पाना? या शायद तुम अब मुझे प्यार करते ही नहीं हो… hmmm? तुम्हें शायद अब मेरी आदत सी है बस। मुझे लगता था कि तुम कम से कम मुझे अपनी job से तो ज़्यादा प्यार करते होगे लेकिन मैं वहाँ भी ग़लत थी। लेकिन अब और नहीं। मैं अपनी बसी बसायी ज़िंदगी को छोड़ के अब कहीं नहीं जाऊँगी। बस अब नहीं। वैसे भी नयी job में जा कर भी तुम कोई तोप नहीं चलाने वाले। कोई और तरीक़ा ढूँढो क्योंकि जैसा तुम चाहते हो इस बार वैसा बिल्कुल नहीं होगा। बिल्कुल भी नहीं।