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इस monologue में अयांश अपनी पसंदीदा किताब ख़राब हो जाने के कारण अपनी पत्नी के सामने ग़ुस्सा करता है

अयांशः यार मुझे समझ नहीं आता। मैंने उनको अपनी किताब पढ़ने के लिए दी जब तक वो बाहर बैठी मेरा clinic से बाहर आने का इन्तज़ार कर रही थीं। मुझे लगा कि चलो वो बोर नहीं होंगी और उन्हें अच्छा भी लगेगा। और जब मैं बाहर आया तो किताब ग़ायब। मैंने कुछ नहीं बोला क्योंकि वो अपने mobile में busy थीं लेकिन मैं चारों तरफ़ अपनी किताब ढूँढ रहा था।

और जब हम वहाँ से निकलने के लिए उठे, मुझे अपनी किताब नज़र आयी… बिल्कुल चिपटी कूड़े का ढेर बनी हुई, तेरी माँ के नीचे… पूरे टाइम। ऐसा कैसे हो सकता है यार? मतलब कोई इंसान किताब जैसी चीज़ के ऊपर बैठ जाए और उसे पता ना लगे? मैंने किताब उठाई और मेरे आँसू निकल गए ऐसी बुरी हालत थी उसकी। और उससे ज़्यादा shocking ये है कि तेरी mummy को कोई फ़र्क़ नहीं पड़ा!

मैंने बिल्कुल नयी ली थी ये book। और तुझे पता है कितना पज़ेसिव हूँ मैं अपनी books को ले कर। इतनी मेहेनत करी थी मैंने ये ख़रीदने के लिए। इतनी तेज बारिश में गया, 4 घंटे line में लगा इसके writer का sign लेने के लिए और नतीजा ये…

I am sorry लेकिन पत्थर दिल हैं वो। दूसरे के सामान की कोई value ही नहीं है और खून फुँकता है मेरा इस वजह से। मैं चुप रहता हूँ क्योंकि वो तेरी mummy हैं लेकिन उनकी खुद की कोई समझ नहीं है क्या? मेरे सामने मत आने देना उन्हें 6 महीने के लिए!