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अनजान रास्ते

इस monologue में विधि बताती है कि जिस शहर में वो बड़ी हुई है वहाँ से निकलने के लिए वो कितनी बेताब है

विधिः नफ़रत है मुझे इस शहर से। भाग जाना चाहती हूँ मैं यहाँ से! मेरे लायक़ नहीं है यह शहर। इस जगह के लिए बहुत modern हूँ मैं । मैं किसी बड़े काम के लिये पैदा हुई थी, यहाँ 24 घंटे इस शहर के बेवक़ूफ़ों से बात करने के लिए नहीं। मन करता है कि बस सबको धक्का मारते हुए यहाँ से बस भाग जाऊँ ताकि यहाँ के लोगों को मेरे होने का एहसास हो, जो मैं feel करती हूँ उसका एहसास हो। ये सब इस तरह से रह कैसे सकते हैं? सब लोग एक जैसे दिखते हैं, एक जैसे कपड़े पहनते हैं, सब कहीं खोए हुए, परेशान, बस जी रहे हैं और मरने का इंतज़ार कर रहे हैं। लेकिन मैं सिर्फ़ जियूँगी नहीं और ना हमेशा इन रास्तों पे चलने वाली हूँ। बस खोयी हुई। बिलकुल नहीं। मैं यहाँ से निकल जाऊँगी, इन गलियों से बाहर इस शहर से बाहर। नए लोगों के बीच अपनी पहचान बनाने। चली जाऊँगी मैं।